प्रस्तावना
एक -सुनने आये है l
दुसरा - बताने आये है l
सभी -हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है l
एक -विष्णु शर्मा की जुबानी हम सुनाने आये है l
दुसरा -हम तीन धूर्तो की कथा आज बताने आये है l
सभी - हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है l
एक - इस पावन उत्सव को सफल बनाने आये है l
दुसरा - हम आप सज्जनों के मन को बहलाने आये है l
सभी - हम पंचतन्त्र की सुन्दर एक कहानी लाये है l
नेपथ्य
एक समय की बात है , सुनिये लगा के ध्यान l
एक विप्र को दान मे ,बकरी दिया यजमान l
बकरी को विप्र लिए कंधे उठाई l
घर को प्रस्थान किये फुला न समाई l
बार बार पंडित जी ,बकरी निहारे l
अंको में भरि भरि, देत पुचकारे l l
पथ में तीन धूर्तो ने देखा ,मोटी बकरी वहु न्यारी है l
यह दान की बकरी है यारो ,पंडित को जान से प्यारी है l
पंडित को मुर्ख बनायेगे
हमबकरी को अपनाएगे
तीनो के मन को भा गई l
बकरी मन में समां गई l
योजना बना कर तीनो ने , कुछ कुछदुरी पर खड़े हुए l
एक ने ब्राहमण से बात कही , अपने हाथो को जोड़े हुए l
पहला धूर्त - हे महात्मा ,
आप धर्मवान है l
अच्छे एवं बुरे का आप को ज्ञान है l
यह तो अत्यंत ही विचित्र बात है l
कुत्ते को कंधे पर आप उठाये .
कुत्ता तो पंडितजी अपवित्र जात है l
पंडित - क्या बकते हो ,बकरी को कुत्ता कहते हो l
पहला धूर्त -मत हो नाराज , मेरे महाराज l
मुझे जो दिखाई दिया , वही तो बतावा l
आप जो भी जाने , भले ही , कुत्ते कों बकरी माने
नेपथ्य से
शंका के बीज तो बो ही दिया . पंडित के पावन तन मन में l
इक बार निहारे बकरी को ,फिर आगे बढ़े अपने धुन में l l
कुछ दूर बढ़े ही थे आगे , आ गया दूसरा धूर्त पास l
घूर घूर के पंडित को देखा , फिर हुआ अचानक यू उदास l
दूसरा धूर्त - हे , धर्मावतार ,
कितनी शर्म एवं लज्जा की बात है l
आप जैसे ज्ञानी , मरे हुए बछरे को ,
कंधे पर डाले , शान से जl त है l
क्या आपकी वुधि हो गई है भ्रष्ट l
क्या आपका ज्ञान हो गया है नष्ट l
पंडित और मरा हुआ वछरा उठाये l
किस शास्त्र में लिखा है , हमे तो बताये l
पंडित - हे महामूर्ख ,
मुझ जैसे ज्ञानी को मुर्ख बनाते हो l
दान में मिली बकरी को मरा हुआ वछरा बताते हो l
दूसरा धूर्त - नाराज मत होए मेरे महाराज l
आपके लिए भैंस ही अक्ल से बड़ी है l
आप जिन्दा या मरा हुआ वछारा उठाये ,
मुझे क्या पड़ी है l
मैंने जो देखा वही तो बताया l
आपको मेरी बात रास न आया l
नेपथ्य से
शंका का बीज अंकुरित हुआ , अब चिंता लगी सताने l
अब बार बार उस बकरी को पंडितजी लगे निहारने l l
विश्वास ओ शंका दोनों का , पंडित मन में अति युध्य हुआ l
विजई विशवास हुआ पल भर , और पंडित पथ निरुद्ध हुआ l l
पल भर के चांदनी को अब तो , अँधेरी रात बनाने को l
आ पंहुचा तीसरा धूर्त पास ,पंडित विश्वास हिलाने को l l
तिसरा धूर्त - कितनी अशोभनीय लज्जा की बात है ,
पाप एवं पुण्य का , अच्छे -बुरे कर्म का ,
धर्मं -अधर्म का , जो उपदेश देता है ,
कंधे पर अपने एक गधे को दोता है l
उतरिये , उतारिये ,उतारिये महराज l
इससे पहले कि देख ले कोई आज l
इस अपवित्र गधे से पिछा छुड़ाये l
ख़ुशी -ख़ुशी आप ने घर को जाइये l
नेपथ्य से
अब रहा तनिक संदेह नहीं , पंडित मन को विश्वास हुआ l
यह बकरी नहीं और कुछ है , ऐसा मन को आभास हुआ l l
पंडित ( मन में )-
क्या है हैरानी ,
कोई कहता कुत्ता ,कोई कहता गधा l
तो कोई कहता यह तो है मरा हुआ प्रानी l
बकरी या प्रेत है , या है पिशाचिनी l
पल पल यह अपने रूप को बदले l
दान की बकरी यह जान ही न लेले l l
नेपथ्य से
बकरी को फेक भगे पंडित , अब धूर्तो की तो बन आयी l
जल्दी से उठा लिये बकरी ,औ शनदार दावत खाई l
उपसंहार
एक -बताने आये है
दूसरा - संदेशा लाये है
सभी - बहाका वे में कभी न आना , सिखाने आये है l
एक - बहकाए में आके विप्र ने अपनी बकरी गवाई l
दूसरा - बहकाए में आकर कैकयी निज सिंदूर मिटाई l
सभी- बहकाये में कभी न आना बताने आये है l
एक - बहकावे ने अपने देश को कैसा दर्द दिया है l
दुसरा -होकर गुमराह हमी ने , जन्नत कों नर्क किया है l
सभी - बहकावे में कभी न आना बताने आये है l
वीरवर
प्रस्तावना
जननी जन्मभूमि है अपनी जननी को प्रणाम है l
जननी के पावन चरणों में अर्पित तन ,धन ,धाम है l l
जों भी जग में जनम लिया है , उसको एक दिन मरना है l
देश प्रेम हित प्राण लुटाये ,वही तो देश के ललना है l
देश के ऐसे लालो को , कोटि कोटि प्रणाम है l
जननी के पवन चरणों ---------------
प्रथम अंक
द्वारपाल - जय हो ,जय हो , जय हो , नरेश की l
शौर्य , पराक्रम की ,
गौरव औ महिमा की ,
यश ओर बल की ,
सम्पति अचल की ,
वुढ़ी और ज्ञान की ,
बीरता महान की ,
जय हो , जय हो , जय हो ,सरवेश की ,
नृपति नरेश की ,
जय हो , जय हो
राजा - क्या है द्वारपाल l
द्वारपाल - हें पृथ्वीपाल ,
एक तेजाश्वी तरुण ,
हृस्ट ,पुष्ट ,गौरवर्ण ,
सिंह कंध ,अतुलित ब ल ,
दमके है कर्ण कुंडल ,
काटी पे कृपाण जिसके ,
हाथो में कडा है l
मिलने की इच्छा से द्वार पे खड़ा है l
राजा - जावो ,
आदर के साथ दरबार में लावो l
अपनी तो परम्परा है ,
वीरो का सम्मान l
द्वारपाल -शिरोधार्य आपकी ,
आज्ञा श्रीमान l
वीरवर - कराता हू प्रणाम ,
महाराज आपको l
राजा - ईशवर बढाए तरुण ,
तेरे प्राताप को l
राजा - नाम
वीरवर -वीरवर
रजा- परिवार
वीरवर -एक पुत्र ,एक पत्नी सरकार l
राजा -काम
वीरवर -जो कोई न कर सके वह करने की चाह l
राजा - वेतन
वीरवर -पांच सौ स्वर्ण मुद्राए प्रति माह l
राजा -इतना वेतन , जबकि छोटा परिवार l
वीरवर - वशुधेव कुटुम्क्म ही अपना विचार l
राजा - एक द्वार रक्षक की जगह थी खाली l