मलेरिया उन्मूलन दिवस
मछर राज - बचाइए , बचाइए , बचाइए
महाराज l
विधाता -क्या हुआ , मछर राज l
मछर राज - हे विधाता , हे अन्नदाता ,
वर्णन न कर सके ,
ऐसा है कष्ट ,
हो रहे हम समूल नष्ट l
विधाता - क्या हुआ वत्स , विस्तार से बताओ ,
अपने कष्टों का कारण समझाओ l
मच्छर राज -डा . रौस की वुद्धि गई थी मारी l
पता लगाया जिसने मलेरिया एक वीमारी l l
हम मानव का थोडा खून पीते थे ,
उन्ही के सहारे खुद भी जी लेते थे l
विधाता - अब क्या हुआ ?
मच्छर राज - क्या नहीं हुआ ,
यह पूछिये चतुरानन l
भवन छोड़ , अपना तो ,
घर बना कानन l
रोज चलता है , सफाई अभियान ,
कमर कास ली मानव ने ,
मिटाने को अपना नामोनिशान l
कल तक नालियों में ,
अपना निवास था l
फल -फुल रहे थे हम ,
ख़ुशी आस -पास था l
कर के सफ़ाई ,
कर दिया निज सफा l
जब भी बीमारी कोई होती है नया l
बार -बार हमे ही कोसे है l
पर सच बा एह है l
मानव ही मानव का ,
रक्त चूसते है l
विधाता - बंद करो बकवास ,l
रहने दो अपना पुराना इतिहास l
मेरी रचना का सर्वोतम उपहार l
मानव का करते हो ,तुम त्त्रिस्कार l
मछार राज - आप तो जानते है ,
हमारा और मानव का ,
छत्तीस का अकड़ा l
अब तो उनको भी ढुक देते है ,
जो है गला -सडा l
हमको सदा समझते है कमजोर ,
फिर भी डरते है l
मछरदानी में सोते है l
पूरी आस्तीन का वस्त्र पहनते है l
ओडोमास ,गुदनैत अपनाते है l
विधाता - मादा मछार इन्फ्लिस का ,क्या हाल है l
उसके मुह तो सदा ,
रकत से रहते लाल -लाल है l
मछर राज - मादा इन्फ्लिस ,
कोमल कमनीय ,
उसकी तो दसा और दयनीय l
अपार कष्ट , उसकी तो प्रजाति ही ,
हो रही समूल नष्ट l
नालिय्यो में डीडी टी , मिटटी का तेल ,
नीम का तेल , सदा डालते है l
नीम के पतियों का धुआ ,
तालाबो में मछली पालते है l
विश्व के गिने -चुने में ,अपना निवास था l
नाली छोड़ ,कूलरो में ,अपना आवास था l
डेंगू का भय मन , सफाई पर अड़े है l
हाथ धो कर हमारे पीछे पड़े है l
हे सृष्टि के रचयिता विधाता श्रीमंत l
आपकी रचना का हो रहा है अंत l
मिर्तुलोक में अब तो है शोक ही शोक l
विधाता - म्र्त्युलोक छोड़ दो ,l
आ जाओ स्वर्गलोक l l
समाप्त
मछर राज - बचाइए , बचाइए , बचाइए
महाराज l
विधाता -क्या हुआ , मछर राज l
मछर राज - हे विधाता , हे अन्नदाता ,
वर्णन न कर सके ,
ऐसा है कष्ट ,
हो रहे हम समूल नष्ट l
विधाता - क्या हुआ वत्स , विस्तार से बताओ ,
अपने कष्टों का कारण समझाओ l
मच्छर राज -डा . रौस की वुद्धि गई थी मारी l
पता लगाया जिसने मलेरिया एक वीमारी l l
हम मानव का थोडा खून पीते थे ,
उन्ही के सहारे खुद भी जी लेते थे l
विधाता - अब क्या हुआ ?
मच्छर राज - क्या नहीं हुआ ,
यह पूछिये चतुरानन l
भवन छोड़ , अपना तो ,
घर बना कानन l
रोज चलता है , सफाई अभियान ,
कमर कास ली मानव ने ,
मिटाने को अपना नामोनिशान l
कल तक नालियों में ,
अपना निवास था l
फल -फुल रहे थे हम ,
ख़ुशी आस -पास था l
कर के सफ़ाई ,
कर दिया निज सफा l
जब भी बीमारी कोई होती है नया l
बार -बार हमे ही कोसे है l
पर सच बा एह है l
मानव ही मानव का ,
रक्त चूसते है l
विधाता - बंद करो बकवास ,l
रहने दो अपना पुराना इतिहास l
मेरी रचना का सर्वोतम उपहार l
मानव का करते हो ,तुम त्त्रिस्कार l
मछार राज - आप तो जानते है ,
हमारा और मानव का ,
छत्तीस का अकड़ा l
अब तो उनको भी ढुक देते है ,
जो है गला -सडा l
हमको सदा समझते है कमजोर ,
फिर भी डरते है l
मछरदानी में सोते है l
पूरी आस्तीन का वस्त्र पहनते है l
ओडोमास ,गुदनैत अपनाते है l
विधाता - मादा मछार इन्फ्लिस का ,क्या हाल है l
उसके मुह तो सदा ,
रकत से रहते लाल -लाल है l
मछर राज - मादा इन्फ्लिस ,
कोमल कमनीय ,
उसकी तो दसा और दयनीय l
अपार कष्ट , उसकी तो प्रजाति ही ,
हो रही समूल नष्ट l
नालिय्यो में डीडी टी , मिटटी का तेल ,
नीम का तेल , सदा डालते है l
नीम के पतियों का धुआ ,
तालाबो में मछली पालते है l
विश्व के गिने -चुने में ,अपना निवास था l
नाली छोड़ ,कूलरो में ,अपना आवास था l
डेंगू का भय मन , सफाई पर अड़े है l
हाथ धो कर हमारे पीछे पड़े है l
हे सृष्टि के रचयिता विधाता श्रीमंत l
आपकी रचना का हो रहा है अंत l
मिर्तुलोक में अब तो है शोक ही शोक l
विधाता - म्र्त्युलोक छोड़ दो ,l
आ जाओ स्वर्गलोक l l
समाप्त
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