आज़ादी के पचास वर्ष
पुरुष -सुन रे सजनी आज़ादी के बीते वर्ष पचास l
चारो तरफ बिखरी है खुशिया , लेकर नूतन हास l l
बीत गई पावस की राका , अब आओ मधुमास l
निर्धानता हो गई अपाहिज ,लक्ष्मी करे निवास l
स्त्री - माना बीत गए मेरे प्रियतम , आज़ादी के वर्ष पचास l
पर मुझको तो नजर न आये ,कोई परिवर्तन खास l
वही है चूल्हा चौका अपना , उन्ही चरणों की दास l l
अपनी तो जैसे थी पावस , वैसी ही मधुमास l
पुरुष -कूप माण्डुक की करती बाते , देखो आंखे खोल l
नर-नारी का अन्तेर मिट गया ,करे पुरुष से होड़ l
कोई ऐसा क्षेत्र नहीं ,जो नारी पहुच परे हों l
पहुच गई कल्पना वहा ,जह मानव पग न धरे हो l
स्त्री - माना आर्थिक प्रगति हुई है ,औ उधोग बदे है l
कांच की चूड़ी के बदले , अब सोने के कड़े है l
पर बदली न सोंच तुम्हारी , वही भाव सड़े है l
पुरुष - कल तक तू थी बंद महल में ,आज आज़ादी पाई हो l
यह तो हमारी कृपा है रानी , हम से गौरव पाई हो l
स्त्री - सलाह , मशविरा , परामर्श , तू माने नही हमारी हो l
नारी को अछूत समझते ,मानो कोई वीमारी हो l
पुरुष - किस समाज औ किस कुटुम्ब में , नारी का स्थान नहीं l
नारी का अपमन हुआ तो , राष्ट्र का सम्मान नहीं l
स्त्री -पुरुष - हम दोनों जीवन रथ के ,दो पहिये स्वस्र्ह्या सुघर है l
निज देश सदा सुरभित , शोभित ,आज़ादी अजर ,अमर है l
समाप्त
पुरुष -सुन रे सजनी आज़ादी के बीते वर्ष पचास l
चारो तरफ बिखरी है खुशिया , लेकर नूतन हास l l
बीत गई पावस की राका , अब आओ मधुमास l
निर्धानता हो गई अपाहिज ,लक्ष्मी करे निवास l
स्त्री - माना बीत गए मेरे प्रियतम , आज़ादी के वर्ष पचास l
पर मुझको तो नजर न आये ,कोई परिवर्तन खास l
वही है चूल्हा चौका अपना , उन्ही चरणों की दास l l
अपनी तो जैसे थी पावस , वैसी ही मधुमास l
पुरुष -कूप माण्डुक की करती बाते , देखो आंखे खोल l
नर-नारी का अन्तेर मिट गया ,करे पुरुष से होड़ l
कोई ऐसा क्षेत्र नहीं ,जो नारी पहुच परे हों l
पहुच गई कल्पना वहा ,जह मानव पग न धरे हो l
स्त्री - माना आर्थिक प्रगति हुई है ,औ उधोग बदे है l
कांच की चूड़ी के बदले , अब सोने के कड़े है l
पर बदली न सोंच तुम्हारी , वही भाव सड़े है l
पुरुष - कल तक तू थी बंद महल में ,आज आज़ादी पाई हो l
यह तो हमारी कृपा है रानी , हम से गौरव पाई हो l
स्त्री - सलाह , मशविरा , परामर्श , तू माने नही हमारी हो l
नारी को अछूत समझते ,मानो कोई वीमारी हो l
पुरुष - किस समाज औ किस कुटुम्ब में , नारी का स्थान नहीं l
नारी का अपमन हुआ तो , राष्ट्र का सम्मान नहीं l
स्त्री -पुरुष - हम दोनों जीवन रथ के ,दो पहिये स्वस्र्ह्या सुघर है l
निज देश सदा सुरभित , शोभित ,आज़ादी अजर ,अमर है l
समाप्त