चाह
मानुष हो तो वहै प्रभुजी ,
उन मंत्री महोदय भामिनी भ्राता l
जो पशु हो तो सुतो नितही ,
भरि अंक सुकोमल कामिनी गाता l
जो खग हो तो अटूट रहे ,
उन बातानुकुलित कक्ष से नाता l
पाहन नाहि उपाहन होऊ ,
सदा झुकाते जिस पे जन माथा l l
मानुष हो तो वहै प्रभुजी ,
उन मंत्री महोदय भामिनी भ्राता l
जो पशु हो तो सुतो नितही ,
भरि अंक सुकोमल कामिनी गाता l
जो खग हो तो अटूट रहे ,
उन बातानुकुलित कक्ष से नाता l
पाहन नाहि उपाहन होऊ ,
सदा झुकाते जिस पे जन माथा l l
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